Yahi Samay Hai Dhiraj Dharna |best motivational poem by kavi sandeep dwivedi

नई सुबह की प्रथम शाम है मन तेरा घबराएगा चिंता तुम्हें डुबाएगी साहस भी हाथ छुड़ाएगा यही समय है धीरज धरना सूरज आने वाला है रात के घेरे छंटने है उजियारा छाने वाला है।   आंच तुम्हारे अंगों को झुलसाती और तपाती है मुश्किल होती सहने में सांस उलझती जाती है। यही समय है धीरज धर…

Rangne Ko Hote Nahi Pankh,Hote Hain ye..Udne Ko | Poem by Kavi Sandeep Dwivedi

जो रोते बैठे हैं.. बैठें  खुद को नहीं भिगोना रोके  नहीं भटकना कहीं और अब  नहीं बिताना समय को ऐसे  जीवन ये जो पाया है  है शीर्ष नया गढ़ने को  रंगने को होते नहीं पंख  होते हैं ये.. उड़ने को ।  उम्मीदों ने छेड़े हैं तार मेरे संघर्षों के  कैसे फलित नहीं होंगे  है तपे हुए हम व…