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कवितायेँ पढ़ें भी और सुनें भी..
सब जाग रहे तू सोता रह
यह कविता मैंने 2017 में लिखी थी।
मैं तब कई दिनों से स्वास्थ्य को लेकर परेशान था।और बीस दिन तक बेडरेस्ट में रहा।
अचानक से एक दिन अपने भीतर से मुझे लगा कि मैं बीस दिन से कर क्या रहा हूं लेटे लेटे। समय बीता जा रहा है और कुछ नही।
तभी यह कविता बनी।
यह कविता मुझे ही डांट रही थी।
मैं अपनी यह रचना जब भी पढ़ता हूं लक्ष्य के प्रति दृढ़ता महसूस करता हूं।
किस्मत को थामें रोता रह
जो दूर है माना मिला नही,
जो पास है वो भी खोता रह ..
लहरों पर मोती चमक रहे
झोंके भी तुझ तक सिमट रहे..
न तूफान कोई आने वाला
सब तह तक गोते लगा रहे..
लहरें तेरी क़दमों में हैं
तू नाव पकड़ बस रोता रह..
सब जाग रहे तू सोता रह
सब जाग रहे तू सोता रह ...
धुप अभी सिरहाने है
मौसम जाने पहचाने है..
रात अभी तो घंटों है
बस कुछ पल दूर ठिकाने है..
इतनी दूरी तय कर आया
दो पग चलने में रोता रह
सब जाग रहे तू सोता रह ...
माना कि मुश्किल भारी है
पर तुझमें क्या लाचारी है..
ये हार नही बाहर की है
भीतर से हिम्मत हारी है..
उठ रहे यहाँ सब गिर गिरकर
न उठ तू यूं ही लेटा रह..
सब जाग रहे तू सोता रह ...
- Kavi Sandeep Dwivedi
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