इस बार रण कुछ और होगा..: Pocket Poem For Students :Kavi Sandeep Dwivedi : Is Baar Ran Kuchh Aur Hoga..
Pocket Poem For Students..
इस बार रण कुछ और होगा
था टूटकर बिखरा हुआ
हारा हुआ ,सोया हुआ
एक आग सहसा जल उठी
चीखकर यह कह उठी
इस बार रण कुछ और होगा..
कब तक रहूँ ,कब तक सहूँ
हूँ मिट गया,कितना मिटूँ
अब मिट्टियाँ फिर से ढलेंगी
इस बार गढ़ कुछ और होगा
इस बार रण कुछ और होगा..
उठ खडा हूँ ध्येय पथ पर
दृष्टि पैनी कर लिया हूँ
अब छल नही कोई छलेगा
'कर्ण 'अब कुछ और होगा ..
इस बार रण कुछ और होगा..
अब नही परवाह कोई
कुछ छूटता है छूट जाये
अब नही चूकुंगा मैं
ये वार अब कुछ और होगा
इस बार रण कुछ और होगा..
- संदीप द्विवेदी
www.youtube.com/kavisandeepdwivedi
twitter/insta/fb/kavi sandeep dwivedi
1 Comments
Sir
ReplyDeleteIf you have time than please read this poem and upload
जब नाव जल में छोड़ दी
तूफ़ान में ही मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फिर धार क्या मझधार क्या
कह मृत्यु को वरदान ही
मरना लिया जब ठान ही
फिर जीत क्या फिर हार क्या
जब छोड़ दी सुख की कामना
आरंभ कर दी साधना
संघर्ष पथ पर बढ़ चले
पिर फूल क्या अंगार क्या
संसार का पी पी गरल
जब कर लिया मन को सरल
भगवान शंकर हो गए
फिर राख क्या श्रृंगार क्या ।
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It is small Request sir......
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