वो क्षण जब मैं होकर भी नही था ...


सबसे पहले साहित्य को नमन जिसने ऐसे संत के सामने उपस्थित होने का स्तर दिया ..फिर उनको धन्यवाद जिन्होंने अपना पूरा प्रयास उन तक मुझे प्रस्तुत करने  में लगाया श्री कपिल रुखड़ जी...
महाकवि दिनकर जी के गाँव सिमरिया बिहार में उनकी स्मृति में आयोजित अन्तराष्ट्रीय स्तर का साहित्य महाकुम्भ ...


मैं जब मोरारी बापू के सामने उपस्थित हुआ एक वक्त तक मैं निःशब्द हो गया ..पहली बार किसी संत, महान आत्मा के सामने आने का ये सौभाग्य मिला था..वो भी इतने करीब से


उन्होंने अपने इतने व्यस्ततम शेडूल में मुझे दिनकर जी रश्मिरथी पढने का अवसर दिया..मुझे कोई अनुमान नही था कि उन्हें मेरी प्रस्तुति इस तरह प्रभावित कर पायेगी मैं भीतर से झिझक रहा था लेकिन इसके बाद  इतना दुलार..आह.
उन्होंने पास बुलाया..उन्होंने अपनी शौल मुझे अनेकों आशीर्वाद से भरे शब्दों के साथ दी..इससे बड़ा सौभाग्य का विषय मेरे लिए और क्या हो सकता था .
उन्होंने चाँद मिनटों में खूब उन्नति करने का आशीर्वाद दिया ..इसी तरह अच्छे विषयों पर काम करते रहने का सन्देश दिया ...आवाज़ और प्रस्तुति की प्रशंसा की...
इसे मेरी अपनी अपने से ही तारीफ भरा लेख न समझें... बल्कि मेरी प्रसन्नता के स्तर को  संतुलन में रख पाने का प्रयास समझें..
वो भरी मुस्कराहट से मुझसे मेरे विषय में मुझसे पूछ रहे थे ..घुटने के बल बैठा हुआ उनकी गोद में मेरा हाथ टिका हुआ था..
ये मेरे जीवन का एक सबसे अधिक उपलब्धि वाला क्षण था ..जिसमे मैं किसी संत का दिल छूकर आया था ..कुछ देर उनके ध्यान में रहा होऊंगा ...
ये तब जाना जब अगले दिन श्री रामकथा करते हुए लाखों लोगों के सामने मोरारी बापू ने बीती शाम की बात कथा के बीच में कहीं....सबके सामने मेरा जिक्र किया ...







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