केवल साँसों से जीवित हो...


क्या औचित्य यहां आने का
अपने मन से क्या कुछ पूछा
पथ में थक कर डेरे डाले
स्वयं ने तेरे स्वयं को लूटा
हाथ हटा अन्तरआंखों से
देख छिपे वो चित्र अदेखे
उम्मीद कभी उम्मीद न खोती
खोते तो विश्वास को तुम हो।।
क्या यूं ही थे जो अब तुम हो।।

लेकर पूर्व मलिन गाथाएं
अश्रु आवरित करते सृष्टि
चुप कर देते हो औरों को
मुख पर रखकर विकट परिस्थिति
व्यथा कथा का बिगुल बजा
खुद पर हंसते या रोते हो
व्यर्थ में घेरे जीवन तुम
केवल सांसो से जीवित हो।।
हैं भरी पड़ी आशाएं जग में
तुम पर है चुनते क्या तुम हो
क्या यूं ही थे जो अब तुम हो।।

हारा टूटा पर रुका नही
संघर्ष किया तब जग जीता
पग रखे बिना ही धरती पर
बोलो किसने उड़ना सीखा
जीवन तेरा अधिकार करो
न व्यर्थ समय बरबाद करो
एक दिशा चुनों और जुट जाओ
प्रेरक जीवन तैयार करो
कदम सुदृढ़ है हर पथ पर
दुर्बल तो अपने सोच से तुम हो..।।
   - Kavi Sandeep Dwivedi


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