उलझे पथ कैसे सुलझाऊं.. this poem i was written when i was in enginnering final year 2015-16 जीवन पथ कैसे सुलझाऊं उलझे पथ कैसे सुलझाऊं सपने हैं सब आँख बिछाए राह कौन सी मैं अपनाऊं दीपक मैं किस और घुमाऊं.. उम्रों का अम्बार रखा था कर लूँगा तय ..ये सोच खड़ा …