उलझे पथ कैसे सुलझाऊं..

this poem i was written when i was in enginnering final year 2015-16

जीवन पथ कैसे सुलझाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं
सपने हैं सब आँख बिछाए
राह कौन सी मैं अपनाऊं
दीपक मैं किस और घुमाऊं..


उम्रों का अम्बार रखा था
कर लूँगा तय ..ये सोच खड़ा था
रह गया सोचते फिर जब देखा
जीवन बस कुछ शेष बचा था
अब है पश्चाताप मगर
किस युक्ति समय विपरीत घुमाऊं
जीवन पथ कैसे सुलझाऊं ...


धरती ने चलकर सतत राह
दिन सदियाँ साल बदल डाले
दुनिया ने खुद को कई बार
कितने रंगों में रंग डाले
मुझमे था वो कलाकार
अब कैसे वो हुनर दिखा पाऊं
उलझे पथ कैसे सुलझाऊं ..


चल छोडें नदिया के धारे
रूककर एक पतवार बना दें
जो सही है हमने उथल पुथल
उनसे कल का दौर बचा दें
जो छूट गया उसको भूलूं
जो है उसको मीत बनाऊं
उलझे पथ ऐसे सुलझाऊं ..
दे दूं जग को जो दे सकता हूँ..
उनका पथ सरल बना जाऊं..
जीवन पथ कैसे सुलझाऊं..
         -Kavi Sandeep Dwivedi

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