बह रही उलटी हवाएं..बहें ये कब तक बहेंगी..!! Kavi Sandeep Dwivedi Motivational Poem..
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मैंने कुछ ऐसे सोचा है..
भीगती आँखों से जब
उम्मीदें बहने लगे..
सब तरफ से हार जब
सब्र को ढकने लगे
फिर भी आँखें मूंदकर
क्यूँ न लम्बी सांस भर
उम्मीद को बहने न दूं
सब्र को थमने न दूं
मैंने कुछ ऐसा सोचा है...
जब कोई अजीज़ अपना
छोड़ कर जाने लगे
वक्त की मनमानियां
हर वक्त तडपाने लगे
क्यूँ न अपनी भूल पर
क्यूँ न सबकुछ भूलकर
दुनिया को समझा करूँ
वक्त से लड़ता रहूँ
मैंने कुछ ऐसा सोचा है ..
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बह रही उलटी हवाएं
बहें ये कब तक बहेंगी
देखता हूँ मैं भी अब
भिडें ये कितना भिड़ेंगी
जब मुझे चलना ही है
लक्ष्य पर बढना ही है
तो मैं ऐसे राह पर
क्यूँ रुकूँ मैं क्यूँ थमूं
मैंने कुछ ऐसा सोचा है
मैं समुंदर की लहर हूँ
नहीं कोई सीपी मोती
कौन पथ दुर्गम मुझे है
किसने मेरी राह रोकी
लाख सीपी पालता हूँ
पत्थरों को ढालता हूँ..
तो इन उछलती नाव से
मैं क्यूँ छिपूं मैं क्यूँ छिपूं
मैं कुछ ऐसा सोचा है..
-कवि संदीप द्विवेदी
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