पढ़िए ,राजस्थान क्यों चर्चित है आतिथ्य सत्कार के लिए 


इतना प्रेम, इतना सम्मान...अंदाज़ा सही था राजस्थान ही हो सकता है। 
इतना उत्साह, इतना जुनून...अंदाज़ा सही है राजस्थान ही हो सकता है।। ❤
.... ये पंक्तियां उस उद्बोधन में कैसे आ गयीं थी पता ही नही चला था। मेरे हृदय ने जुबान की एक न चलने दी थी। इतना मुझे याद है। 
आइये वो मोमेंट बताते हैं आपको
... ये क्षण है कोटा आमंत्रण का। प्रवीण नागर जी बहुत समय से हमसे जुड़े थे। मिलनसार व्यक्तित्व। सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क में थे। 
  .... बस एक दिन मेसेज आया आपका नंबर मिल सकता है।। फिर बात हुयी परिचय बताया। 
उन्होंने कहा- आपको हम हमारे कोचिंग क्लास साफल्य में एक प्रेरक वक्ता के रूप में बुलाना चाहते हैं।। 
मैंने कहा- मुझे अनुभव कम है और क्या बता सकूँगा उन्हें। मेहनत करो, लगे रहो, हिम्मत मत हारो, खुश रहो। 
 मेरे पास बोलने के लिए बहुत कम होता है। और ये बड़ी बड़ी बातें सब 20 मिनट आधे घण्टे में पूरी हो जायेंगी।और इतने बच्चे हैं इतना समय देंगे तो अच्छा नही है सब इतना जल्दी हो जाये। 
फिर नागर जी ने अपनी क्लास के संस्थापक सदस्य पीयूष सारंग जी का जिक्र किया।इससे पहले मैंने सारंग सर का नाम....कैसे याद नही पर कहीं सुन रखा था।अच्छे साहित्य प्रेमी अच्छे व्यक्तित्व के रूप में। 
  राजस्थान के लोगों के स्वागत सत्कार की प्रशंसा सुनी थी।😊राणा प्रताप🙏👊 जिनका नाम आते ही राजस्थान का हृदय शौर्य और गर्व से फूल जाता है।
बस फिर क्या था स्वार्थ हावी हो गया। 😊😊😊
19 दिसम्बर 2020
सारी तैयारियां उन्होंने कर दी मैं कोटा रेलवे स्टेशन पहुंचा। नागर जी और उनके साथ श्री रूपेश प्रजापति जी, अश्विनी जी और लोग लेने आये। आह..जो सुना था...जी रहा था। आप तस्वीरें देखिये😊

  होटल में रुकना हुआ। 
अगले दिन वहां के Govt कला महाविद्यालय में जाना हुआ।अच्छा लगा। 
 ..फिर जिनका नाम मैंने काफी सुना था वो मिलने आये। पर उनके विषय में अधूरा सुना था अच्छे शिक्षक और प्रेरक वक्ता के अतिरिक्त इतनी ऊँचाइयाँ रखने के बावजूद उन्होंने भीतर की सादगी को थामे रखा था। 
फिर एक एक कर सबसे मुलाक़ात हुयी बहुत अच्छा लगा।
फिर 21 को स्टूडेंट्स से मुलाकात करनी थी बताया गया था हमें...बहुत उत्साहित हैं सब। इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी। जब आपसे कोई मिलने वाला ये भाव रखे। 
 
अब मेरे मन में यह था कि बोलूंगा क्या? कविताएँ तो ठीक है पर वो तो कहीं भी सुनने को मिल जायेंगी उन्हें। वैसे तो सब मिल सकता है..फिर भी। 
     मैंने अपने भीतर तय किया जो अपने 29 साल में  सीखा है समझा है...गलतियों से। वो अनुभव रखूंगा शायद उन्हे इसमें कुछ मिल सके। 
बस कोई बिंदु छूटे न...इसलिए थोड़ा कुछ लिखा।
   और अगले दिन जब स्टूडेंट्स के बीच पहुंचा।।आह।।
 कितने उत्साही.. कितने प्रेमी।हजारों की भीड़। उनकी तालियों ने मुझे सहज किया। 
पूरे साफल्य परिवार ने बहुत अच्छे से स्वागत किया।
श्री नरेश नागर जी, और मजाकिया अंदाज़ में मुद्दे की बात कहने वाले शान धाकड़ जी। 
विष्णु मीणा जी के V production  का पधारो कोटा गीत ने अलग ही माहौल बना दिया। बहुत बेहतरीन। 
और हां एक बात इस क्लास और स्टूडेंट्स की प्रशंसा के रूप में..जो मैंने अनुभव किया- 
स्टूडेंट्स में इतना अनुशासन..और किस तरह किसी स्टेज पर खड़े वक्ता को...उद्बोधन में सहजता रहे ..ये परख। मुझे बहुत पसंद आया..। निश्चित ही ये सब स्टूडेंट्स के परिवारों और उनके शिक्षकों से मिले संस्कारों का परिणाम रहा होगा। 
मैंने करीब एक घंटे तक बोलने की योजना थी  पर ये हमेशा याद रहेगा मुझे कि मेरे जीवन का यह पहला सेमिनार था और दो घण्टे से ऊपर बोलता रह गया।
ना मेरा बोलना बन्द हो रहा था..ना वो हजारों स्टूडेंट्स का सुनना । उनकी प्रतिक्रियाएं मुझे मेरे विचार उन तक रखने में घी दिये जैसा काम कर रही थी 😄😄😄 । जो लिख कर लिया था सब एक तरफ हो गया। 
बस जो आ रहा था वही चल रहा था। 
एक बात कहूं.. मैं बिल्कुल गलत हूं पर मैं अधिक professional नही हो पाता। मुझे वैसा ही रहना पसंद है जैसा मैं हूं। कोशिश करता हूं तो बिगड़ जाता है। 
लेकिन यदि आप हमसे छोटे हैं तो नसीहत है अपने काम में professional रहिये।बस अपने अंदाज़ को बिना खोये ..
ये बस मेरा अपना भाव है। 
  ..अच्छा लंबा सिलसिला चला। 
    और फिर मेरे वापस घर पहुँचते तक मेरे facebook और  instagram पर जैसे पूरा कोटा आ गया। 
पीयूष जी के परिवार से मिलना हुआ। उनके पिता जी बड़े साहित्य प्रेमी। समझ गया पीयूष सर के व्यवहार की गंगोत्री कहां है।। 
 उनके दिये उपहारों में श्री नाथ की वो भव्य तस्वीर मेरे घर की शोभा बढ़ाती है। 
पीयूष जी ने कोटा की चर्चित जगहों में घुमाया। 
 फिर रात का खाना हुआ
और फिर उसी रात वापस निकलना था..
 थोड़ा भावुक था पर जाना था। स्टेशन पर सब छोड़ने आये। जो उन्होंने अपना स्नेह लुटाया था सच कहूँ राजस्थान का ये अंदाज़ मन में बस गया था।
 बस ऐसे ही जिंदगी गुजर जाए और क्या चाहिए। 
बहुत धन्यवाद आप सबका। राजस्थान का।
मेरे दादा जी कहते हैं जब कोई हृदय से किसी का स्वागत करता है तो उसको अपनी अच्छी से अच्छी व्यवस्था में भी कमी लगती रहती है और उसका ये भाव आखिर तक नही दूर हो पाता कि कुछ कमी तो नही रह गयी। और वही उसको व्यवहार कुशल बनाता है भारत दरअसल इसी भाव के लिए जाना जाता है। 
ऐसा तब होता है जब कोई अपने लगाव की थाह नही नाप पाता।उसे यह  पता नही चलता कि सामने वाला उनके स्नेह उनके भाव में डूब गया है.. और सुना है राजस्थानियों में यही होता है। 

...सभी स्टूडेंट्स का धन्यवाद आपका। आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं। 
याद रखना हार भी जाना तो घबराना मत यार..बस डरना तो थोड़ा खड़े हो जाना। हारना तो थोड़ा रो लेना । पर बस थोड़ा ही। अपने पंख झाड़ना और फिर लग जाना कुछ तो होगा ही।। सबसे बड़ा उपहार तो आप ही हैं कहानियाँ संघर्षो की बनती है। हारा हुआ भी जीता हुआ कैसे दिखता है वो प्रभु श्री राम में देखना। 🙏🙏💐
आप हमसे क्या सीख पाये ये तो आप जानें लेकिन मैंने आप सबसे बहुत कुछ सीखा।फायदे में तो मैं ही रहा।
फिर मिलेंगे।। 🙏❤




2 Comments

  1. आदरणीय संदीप जी सर,, आप आये बहूत अच्छा लगा, बहुत कुछ सीखने को मिला आपसे,, मैने कभी कोई सेमिनार नही अटेंड किया पता नही बोरिंग लगता था,,पर जब सुना कोई कवि आने वाले है तो मैं जो 20 दिनों से घर आई हुई थी बस आपको सुनने 90km से वापस आ गयी ,,पता नही पर क्यों ऐसा लग रहा था कि कुछ भी हो बस जाना है शायद नही आती तो बहुत कुछ छूट जाता 😊 आपसे जो प्रेरणा मिली वो जीवन मे बहुत कम लोगो से मिलती है 21dec हम सब के लिए भी जीवन भर स्मरणीय रहेगा ,,,,,आप आये बहुत बहुत धन्यवाद आपका ओर साथ ही उन सब का जिन्होंने इस सेमिनार का आयोजन किया और हमारे सबसे प्रिय गुरु पीयूष सर सच मे आप गुरु ही तो है बहुत बहुत धन्यवाद,,, Git Dhakar🙏

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  2. आपके इस स्नेह के लिए वैसे तो निःशब्द हो गया भाई... बस इतना कहूँगा कि ये ब्लॉग में लिखे शब्द मेरे जीवन की अनमोल धरोहर है जिसे आजीवन संजो के रखूँगा..!!
    सारी यादें जीवंत हो गई , एक अलग ही एहसास और ऊर्जा दी आपकी अभिव्यक्ति ने.. स्नेह और साधुवाद आपको.. प्रभु श्री राम और दिनकर जी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे.. आपका पीयूष सारंग

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