प्रजा ऐसी राम की थी।।click and listen also.. 

जिस राज्य के राजा स्वयं
त्यागी तपी विद्वान हों
क्यों न प्रजा उस राज्य की
अद्भुत गुणों की खान हों
श्री राम के ही साथ यह, 
कथा कइयों राम की थी। 
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी। 

अयोध्या, तट पर खड़ी थी
दशा ऐसी बन पड़ी थी
एक त्यागी के लिए, 
सब त्यागने की धुन चढ़ी थी
तन कहां उनका रहा
मन भी कहां उनका रहा
नेत्र में भी राम थे, 
मन मंजरी भी राम की थी
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी।। 

श्री राम वापस नही आये, 
बड़ी दुर्गम याचिका थी
वर्ष चौदह राज्य की, 
राजा बनी एक पादुका थी
कौन ऐसे मानता है 
कौन व्रत यूं ठानता है
वो लौटा खाली हाथ पर, 
चर्चा उसी के नाम की थी
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी।।। 

सुना है कुछ नेत्र भी, 
वर्षों कई सोए नही थे
था त्याग तो बस राम का, 
पर वो भी क्या खोए नही थे
कौन ऐसे मानता है
कौन व्रत यूं ठानता है
श्री राम का ही साथ जिसकी, 
उम्र भर की कामना थी
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी।। 

वो जटायु, पंख जिसके
जल गए थे, कट गए थे
जब तक हवा थामे रही
सब अंग उसके लड़ रहे थे
क्यों इस तरह जीवन समर्पण? 
क्यों इस तरह सर्वस्व अर्पण? 
क्योंकि बात इससे कहीं बढ़कर, 
नारी के सम्मान की थी। 
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी ।।

सबरी, जिसके धैर्य पर
मृत्यु भी हारी हुयी थी
श्री राम जिसमें रम गये थे, 
 राम पर वारी हुयी थी
हो तो गया था लक्ष्य अर्जन
पर लगा था सर्वस्व जीवन
पर बात जीवन की नही थी, 
बात अर्जित धाम की थी। 
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी।।

एक पात्र भी ऐसा कथा का, 
श्री राम पर जीवन रखा था
प्रभु चरण जिसके शीर्ष थे, 
वो भक्त था, अद्भुत सखा था
क्या नही उसके हाथ था
क्या नही उसके पास था
वो उस हृदय का पुष्प था, 
जो हृदय सबकी साधना थी
बात यह अभिमान की थी
प्रजा ऐसी राम की थी।।। 
-कवि संदीप द्विवेदी







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