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अँधेरा तब परेशान कर सकता है जब हमारे पास रौशनी न हो ...
रौशनी यदि है...थोड़ी सी भी है तो वो हमें अँधेरे से निकाल कर पूर्ण प्रकाश तक पहुंचा सकती है...
जहाँ अँधेरे का नामो निशान न रहेगा..
 मैं जो कहना चाहता हूँ उसको एक उदाहरण से कहना चाहूँगा जिसे हम सब हमेशा से अनुभव करते आये हैं। किसी दिन जानबूझकर करिये।
..कभी भोर में निकलिए ..जब पूरा अँधेरा हो ..निर्णय करिए किधर जायेंगे ..एक टॉर्च रखिये साथ में..
अब टॉर्च की रौशनी में आगे बढिए जिधर आपको जाना हो...
ये टॉर्च हो सकता है आपको जहाँ जाना है वो यहीं से न दिखा पाए ..पर यदि इसकी रौशनी में जितना दिखाई दे रहा है उस हिसाब से मंजिल की ओर बढ़ते चले गये तो एक समय में आप पहुच जायेंगे ....
है न ऐसा ?
सोचिये, क्या आपके पास उस समय इतनी बड़ी टॉर्च थी जो अँधेरा मिटा सकती..? नही 

और जो टॉर्च आपके पास थी वो बस आपके लक्ष्य के रस्ते को थोडा थोडा दिखा रही थी ..
पर इसी के दम पर अँधेरा चीरते हुए आपको मंजिल मिल गयी ....
यदि हम यहीं से मान लेते कि मंजिल दिख नही रही तो मिलेगी क्या..
तो क्या हम यहाँ पहुँचते..हम चलते ही नही ऐसे में..
दरअसल लक्ष्य ऐसा ही होता है ...छोटी छोटी योजना ही हमें वह के लिए रास्ता बनाती है ...
और फिर यह भी कि यदि आप लक्ष्य ही न बनाते तो सोचिये टॉर्च आपके लिए क्या करती..वो भी हमारे साथ भटकती..उसकी रौशनी यूँ ही व्यर्थ जाती..
मतलब यदि लक्ष्य नही होगा तो आपका हुनर,आपकी लगन भी यूँ ही व्यर्थ जाएगी  ...
कहना ये चाहता हूँ लक्ष्य ऊंचा रखा जाये  और उस ओर शुरुआत की जाय बाकि आपकी लगन आपका विश्वास हुनर ये सब मिलकर वहां पहुंचा ही देंगे...टोर्च की तरह..
किसी लक्ष्य का केवल होना हमारी ताकत को सही दिशा दे देता है 
इसलिए मैंने कहा 
लक्ष्य का होना जरुरी है ... दिखना नही
वो तो आपकी ताकत लगन खोज ही निकालेंगी। 
 एक बड़े लक्ष्य में कई लक्ष्य होते हैं उन्हें अपने छोटे छोटे प्रयासों से पार करते रहिये..पता ही नही चलेगा कब ये छोटे छोटे लक्ष्य आपको बड़ा लक्ष्य पाने का हौसला दे देंगे...
और आसानी से आप पार कर जायेंगे...
हिम्मत रखिये और धीरज रखिये...ये टॉर्च आपके बड़े काम आयेगी...

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