जब भी हम सबके मानस पटल पर महाभारत की सुनी, पढ़ी, देखी गाथाएं उभरती हैं...
 तब कृष्ण तो हैं ही...उनके साथ कई और चरित्रों के सामने भी ह्रदय नतमस्तक होने लगता है ...जैसे पितामह भीष्म,युधिष्ठिर...
...और इसी क्रम में एक और पात्र ह्रदय में अपनी जगह बनाने लगता है..अपने गुणों से..अपने शौर्य से..
और वो है कर्ण ..महारथी कर्ण..महादानी कर्ण..।प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवन को अनुकूल बनाने वाला योद्धा ..
महाभारत में निर्णायक युद्ध की क्षमता रखने वाला योद्धा... 

एक बड़ी सुन्दर बात है कि हम सब किसी की सफलता से प्रभावित होते हैं ..और उससे सीखते हैं ..प्रेरित होते हैं..अच्छी बात है लेकिन कई बार यह निधि हारने वाले का जीवन भी संजोकर रखता है...उसको अनुभव होने वाली हर सामान्य भूलों के परिणाम हमें सतर्क कर देते हैं ..अवगत कर देते हैं .. 
स्पष्ट है मैं कर्ण की चर्चा करना चाह रहा हूँ...
हलाकि वो हारा नही था लेकिन युद्ध स्थल पर एक पक्ष के बाण दुसरे पक्ष को बेध जाए तो बेधे जाने वाले पक्ष को हारा हुआ कहते हैं ..बस इसलिए। 
वो तो विजेता था हृदयों का...चाहे वो श्री कृष्ण का ही क्यों न हो..। 

 मैं बचपन में टीवी के माध्यम से महाभारत देखा..समय आगे बढने पर विचार की क्षमता आयी   ...तो और जानने की उत्सुकता हुयी..और यह खोज महाकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' जी की 'रश्मिरथी' तक लायी ..कर्ण पर चर्चित उनका अमर काव्य कर्ण का एक अलग ही दृश्य प्रस्तुत करता है ...प्रेरित करता है .. 

और ऐसी ही एक और पुस्तक कर्ण के ऊपर मिली "कुंती पुत्र कर्ण" श्री वेदप्रकाश कम्बोज जी द्वारा लिखित बेहतरीन उपन्यास .. 
पढ़ते हुए हम कर्ण के साथ ही घूमने लगते हैं ...कर्ण के जीवन का इतना बढिया चित्रण आनंद आ गया .. उनके मनोभावों को जिस तरह से श्री वेद प्रकाश कंबोज जी की कल्पना ने यात्रा करायी है ...कर्ण को और करीब से देखने का अवसर मिलता है। 
इस पुस्तक की शुरुआत ही बाँधने लगती है ...
प्रथम में कर्ण का गर्व कि उसे द्वारकाधीश जी ने स्वयं राय विमर्श के लायक समझा ...लेकिन उस चर्चा में कर्ण का रहस्य जो उसको बताया गया .. उससे कर्ण की मनोदशा..।
महाभारत की पृष्ठिभूमि तैयार हो रही है ..योद्धा पक्ष चुन रहे हैं ...कर्ण कौन सा चुने .. सबके पक्ष लगभग निश्चित हैं ...पितामह का भी..लेकिन कर्ण अपना  रहस्य और विकल्प जानने के बाद किस ओर खड़ा हो .. इस भाव से शुरुआत होती है इस पुस्तक की... 
और अंत में श्री कृष्णा का और पांडवों का उसके प्रति प्रेम..उसकी महानता का वर्णन। 
बहुत सधा हुआ लेखन ..छोटे छोटे भाव भी उभर कर सामने किये गये हैं ...अद्भुत। प्रेरक। 
 श्री वेद प्रकाश कम्बोज जी को उनकी इस रचना के लिए उनके नये पाठक का धन्यवाद और प्रणाम .. आपका विवेकानंद जी पर भी लिखा उपन्यास पढने की उत्सुकता है... 
 शानदार पुस्तक "कुंती पुत्र कर्ण"

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