'हर भाषा ने साहित्य को संजोया है ..या यूँ भी कहें कि साहित्य ने भाषा को संजोया है .."

जब हम देववाणी संस्कृत भाषा की चर्चा करते हैं तो उनके रचनाकारों से हम भाषा की विशालता से परिचित होते हैं..उसके व्याकरण से परिचित होते हैं.. ...

यह सौभाग्य है कि उस समय संस्कृत के रचनाकारों की धरोहर आज भी सुरक्षित है ..धरोहर की ही तरह ..

आज साधारणतया बोलचाल में बहुत कम प्रचलन से उस भाषा के साहित्यों में छुपे गूढ़ ज्ञान से हम वंचित रहते हैं जबकि हमारी संस्कृति को जानने के लिए इस भाषा में रूचि लेनी ही पड़ेगी..इनके साहित्यों को पढना पड़ेगा समझना पड़ेगा....

भाषा के विषय में भी हम चर्चा करेंगे लेकिन आज इस भाषा के एक प्रसिद्द रचनाकारों का परिचय कराना चाहूँगा..

और इसमें जो सबसे पहले नाम आता है वो है महाकवि कालिदास जी (kalidas) का..

उनकी रचे साहित्य संस्कृत भाषा की सम्पन्नता से परिचय कराते हैं...

तो आइये जानते हैं।। 

कालिदास जी हैं कौन ?

सबसे पहले उनका परिचय उनको लेकर प्रचलित कथा से.. 

विदुषी और सुंदरी विद्योत्मा ने घोषणा की..

जो शास्त्रार्थ में उसे पराजित करेगा उसे वो अपना पति वरन करेंगी ..इस घोषणा से आसपास के राज्यों के विद्वान पुत्रों ने उनकी शर्त पर विजय पाने के लिए आये लेकिन पा न सके..और विद्योत्मा ने सभी का अपमान भी किया.. इससे उनके भीतर उपजे हीन भाव ने उन्हें एक षड़यंत्र के लिए उकसाया जिसमें उन्होंने कैसे भी विद्योत्मा का विवाह किसी मूर्ख से करवाने की योजना बनाई..जिससे उसका घमंड चूर  हो जाये..

इसके लिए उन्होंने मूर्ख ढूंढना शुरू कर दिया..फिर एक जंगल में उन्होंने एक व्यक्ति को देखा जो उसी डाल को काट रहा था जिसके खुले छोर की ओर स्वयं बैठा था..उनकी तलाश पूरी हुयी..और इनको मौन रखकर बड़ी चतुराई से विद्योत्मा के सामने विद्वानों ने उस व्यक्ति को विद्वान् साबित कर दिया..उनकी जीत हुयी..और प्रभावित विद्योत्मा ने कालिदास से विवाह कर लिया लेकिन जब एक दिन किसी बात पर विद्योत्मा ने ये जाना कि उनको संस्कृत ही नही आती ..वो समझ गयीं कि उनके साथ धोखा किया गया..और उन्होंने कालिदास को घर से यह कह  कर निकाल दिया कि घर में संस्कृत का विद्वान होकर ही कदम रखना.. यह कालिदास के जीवन का सबसे चमत्कारिक मोड़ था..

पत्नी के वचन कालिदास को चुभ गये ..निश्चय किया कि अब वो विद्वान होकर ही लौटेंगे. साधना से उन्होंने कुण्डलिनी जाग्रति की..उन्हें  माँ काली के साक्षात् दर्शन हुए और विद्वान् एवं  महाकवि के रूप में प्रसिद्ध होने का वरदान दिया..इस तरह वो बड़े विद्वान् और महाकवि के रूप में प्रसिद्द हुए.. तो यह उनको लेकर प्रचलित कथा से उनका परिचय था..

अब इस तरह जानते हैं ..

जैसा कि मैंने ऊपर बताया कि कालिदास संस्कृत भाषा के प्रसिद्द रचनाकार हैं...इन्हें सरस्वती का वरदपुत्र भी कहा जाता है..

उनके जन्म समय और स्थान को लेकर कोई प्रमाणित जानकारी नही है..एक राय  नही है..

इनके  जन्म के समय को लेकर इन्हें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल का माना जाता है इस तरह इन्हें चौथी सदी  आसपास का कहा जाता है ..

द्दोसरा मत है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल का समझा जाता है इस तरह ये चतुर्थ शताब्दी के माने जाते हैं... 

और उनके जन्म स्थान को लेकर जो कुछ अनुमान है उनकी रचनाओं से और किवंदतियों पर आधारित है ..इस प्रकार उनके जन्म को लेकर जिस स्थान को बहुमत है वो है महाकाल की नगरी उज्जैन..

कहते हैं उनके प्रसिद्द खंडकाव्य मेघदुतम में उन्होंने उज्जैन का खूब वर्णन मिलता है...कथा के अनुसार रामगिरि पर्वत से अलकापुरी तक की मेघ यात्रा में मेघ उज्जैन होकर जाता है..और उस जगह का बड़ी सूक्ष्मता से वर्णन है...इस प्रकार विद्वानों ने उज्जैन को उनके जन्मस्थान होने का अनुमान लगाया है..  

उनके नाम में दास लगा होने से(जो बंगाल मेंअधिक होते हैं)  कुछ विद्वान बंगाल तरफ का मानते हैं..

कालिदास की रचनायें  पौराणिक, वैदिक कथाओं और चरित्रों  पर केन्द्रित हैं ..जो उनका सुन्दर रोचक अद्भुत  परिचय कराती हैं ..

उनके लिखे गये नाटक, महाकाव्य, खंड काव्य कालजयी हैं ...जो भाषा को और रचनाकार को कालजयी बनाते हैं..

कालिदास की रचनाएं 

महाकाव्य - रघुवंशम-  सूर्यवंशी राजाओं का वर्णन..

                 कुमारसंभवम-शिव पारवती के पुत्र कार्तिकेय पर आधारित 

खंड काव्य - मेघदुतम - एक यक्ष की बड़ी अद्भुत विरह प्रेम गाथा 

                  ऋतुसंहार- भारत की विभिन्न ऋतुओं पर आधारित 

नाटक - अभिज्ञान शाकुंतलम - दुष्यंत शकुन्तला की प्रेम कहानी 

             मलाविकघ्निमित्रम- शुंग वंश के राजा अग्निमित्र की प्रेम कहानी 

               विक्रमोर्वसियम - उर्वशी और पुरुरवा की प्रेम कहानी..  

 तो यह परिचय था संस्कृत भाषा के विद्वान् और रचनाकार कालिदास जी का .. 

जो भी उन्होंने लिखा वो दुनिया में साहित्य के क्षेत्र में भारत का नाम शीर्ष पर रखता है ... हम सबको उनके लिखे साहित्य को समझना चाहिए...

धन्यवाद

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