विश्वास की शक्ति


                   
सुनें 
दुनिया में शायद ही कोई ऐसी मुश्किल हो ...
जो कभी आयी हो और उसे जीता न गया हो...
 हां..समय लग गया होगा ..
सब अस्त-व्यस्त हो गया होगा 
लेकिन हमने जीत कर ही माना होगा.. 

कई बार जीवन के सामने छाया अंधेरा..एक पग के लिए भी रोशनी नहीं देता.. अपनी असमर्थता बढ़ चढ़कर हमें पीछे खींचने लगती है.. मुश्किलों का न ओर दिखता है न छोर दिखता है.. 

फिर क्या होता है? 
फिर..कोई उस दशा को स्वीकार कर लेता है... 
और कोई!

कोई..खड़ा होता है और जोर से दहाड़ता है और चीर देता है अंधेरे को..विश्वास और साहस भरे कदमों से...
और फिर एक पग क्या..सौ पग पीछे दिखता है अंधेरा.. 

ये होती है दृढ़ विश्वास और साहस की क्षमता.. 

बस, इतना ही..और सब कुछ संभव है.. 
क्योंकि यदि ऐसा संभव नहीं होता…तो दो वनवासी त्रिभुवन पर अधिकार करने की छमता रखने वाले ..शक्तिशाली  रावण का वैभव तहस नहस नहीं कर पाते ... 

जी हां, मैं बात कर रहा हूं..प्रभु श्री राम की !
उनके जीवन की सारी घटनाएं न जाने कितने संदेश लेकर के रखती  हैं .. 
एक घटना और न जाने कितनी संदेश !

विचार कीजिए,माता सीता के हरे जाने के बाद श्री राम के पास कोई तरीका नहीं था.. सिवाय विलाप करने के, रोने के और भूल जाने के.. 

लेकिन वो राम थे.. उनके आसपास विवशता का वश कहां चलता है। 
वो विलाप करने की बजाय..खोजने के लिए निकल पड़े .. 
असंभव मार्ग को संभव करने निकल पड़े.. 

...और फिर उनके विश्वास और साहस का परिणाम देखिये..कि आकाश मार्ग से जाने वाले रावण को भूमि मार्ग से ही चलकर मात्र सीता को ही नहीं लाए..   
रावण के कुशासन का भी अंत कर डाला। 

रावण तो बस इतना ही देखकर अचंभित रह गया होगा.. 
कि ये दो वनवासी..इतना जल्दी ..यहां आते आते दो लाख कैसे हो गये.. 
यह था श्री राम का विपरीत परिस्थिति में साहस ,विश्वास और धैर्य ..। 
उनके दृढ़ विश्वास ने प्रयासों को कभी थकने नहीं दिया.. 
कहना यह चाहता हूँ, कि यदि लक्ष्य है तो रास्ता भी होगा ही...नहीं है तो बन सकता है । 
इसलिए हम आप या कोई भी ..
यदि कोई परीक्षा दे रहे  है ..
या कुछ भी कर रहे है...
हर परिस्थिति में अपना विश्वास और साहस बनाकर रखें 
संजोये रखें! संभाले रखें!
कुछ न कुछ लेकर लौटेंगे 

और याद रखिये, 
पथ भी कहीं भटकायेगा 
कुछ भी समझ न आयेगा 
 ईर्ष्या छल से सना पथ
अनगिनत बाधा लाएगा 
तभी हिय का नक्शा खोलकर 
खुद को उसी पर मोड़ कर 
हार, डर, भय के धनुष से 
तीर सा तू बढ़ निकलना 
लक्ष्य से तू न विचलना 
राह में तू न बिखरना 
देखती है  तुझको मंजिल
तू बस उसी के ओर चलना 
तू बस, उसी के ओर चलना 
धन्यवाद
- Sandeep Dwivedi

मिलते हैं फिर कुछ नया लेकर..
आपका साथ यूँ ही रहे...

1 Comments

  1. बेहद संदेशप्रद सृजन

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