3. दीपक का तीसरा संदेश 

एक दिन तूफान से दिये का इतना सम्मान देखा न गया।

उसने कहा ये एक छोटा सा दिया और ये रुतबा।। अब मैं दिखाता हूँ रुतबा क्या होता है।
वो अपनी पूरी क्षमता से दिये पर बरस पड़ा।।
दिये को बुझते एक पल न लगे।।
फिर तो तूफान ने जैसे जग जीत लिया हो।।
वो और तेज हो गया।
लोग छिपने लगे।।
यहाँ वहाँ भागने लगे।
थोड़ी देर में जब उसे लगा कि अब तो लोग मेरा लोहा मान ही गए होंगे।।
ये पहचान गए होंगे कि ताकतवर कौन है
और अब इस दिये का नही मेरा सम्मान होगा।
लेकिन वो हैरान रह गया।
उसने देखा कि लोग उसको कोस रहे थे।
और दिये को ढूंढ रहे थे
फिर जलाने के लिए,
रौशनी के लिए,
आरती के लिए।।
तूफ़ाँ यह देखता रह गया।
और वो समझ गया..
ताकत कितनी भी हो..
यदि विनाशकारी हो तो दुनिया उसे देवता नही स्वीकारती।
वो विवश कर सकती है। प्रभावित नही कर सकती।
लेकिन ताकत भले कम हो
यदि उसमें कल्याण भाव हो,
भलाई हो,..सच्चाई हो..
तो दुनिया स्वीकारने में देर नही करती।।
तूफान ने हार मान ली और ये कहकर गया-
मैं जीतकर भी हारा रहा।
वो विजेता बन गया जिसे हराया था मैंने।।
तो यह था दिये का तीसरा संदेश।
शुभकामनाएं.. नमस्कार।।


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