महाभारत की कथा में

पात्र था अद्भुत धरा में

बचपन अभी छूटा नही था

पर खड़ा वीरों की सभा में

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा


सीख ये संसार ले ले

युद्ध भी आकार ले ले

हाथ छोटे ही सही

यदि हौसलों का भार ले ले

कौन योद्धा टिक सकेगा

कौन मर कर मर सकेगा

बिगुल वीरों के लिए है

युगों तक बजता रहेगा

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा



क्या हृदय लेकर बढ़ा होगा

यह रण जब उसने चुना होगा

श्रेष्ठ योद्धाओं के सम्मुख

एक बाल योद्धा खड़ा होगा

द्रोण जैसे गुरु रहेंगे

गर्व मुझपर कर सकेंगे

निर्णय भले ही मृत्यु हो

पिता का गौरव बढ़ेगा

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा


भेदकर अभेद्य द्वारे

पहुंचा नदी के उस किनारे

युद्ध के सारे सितारे

इससे बड़ा क्या पा सकेंगे

यह तीर उन तक जा सकेंगे

वाह क्या अवसर मिला है

अभिमन्यु अब अंकित रहेगा

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा


लेकिन फिर


एक साथ सब बढ़ने लगे

नियम को ठगने लगे

यह क्या है कुछ समझा नही

ये वीर क्या करने लगे

आवाज़ दे किसको पुकारे

यहाँ ज्ञानियों ने ज्ञान हारे

यह कृत्य आपकी वीरता को

किस धरा में जगह देगा

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा


गर्व से मन मुग्ध था

कि आप सबसे युद्ध था

मेरे बाण क्या ही बेध पाते

कौशल न इतना उच्च था

अभियान गौरव के लिए था

यह बाण वीरों के लिए था

मुझे छोड़ना मत महावीरों

मस्तक नही मेरा उठेगा

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगा


अभिमन्यु बस इतना ही था

नियति थी, मिटना ही था

डटा रण में जिस तरह

संसार तो झुकना ही था

मैं गया जय टीका लगाए

वो मिल के भी न जीत पाए

इस हार को मत हार कहना

इस हार को हर युग झुकेगा। 

भले यह रण आखिरी हो

जग मुझे अंकित रखेगाl

-Sandeep Dwivedi

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