मन का ये अंधियारा रस्ता

रौशन कैसे होता है

कड़ी धूप में प्यासा कोई

मन का ये अंधियारा रास्ता, 

रौशन कैसे होता है.. 

खड़ी धूप में प्यासा कोई, 

कैसे राह संजोता है.. 

कैसे उठते तूफानों को, 

धरती थामा करती है.. 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो। 


घिसट घिसटकर चलने वाला, 

लक्ष्य में कैसे होता है.. 

चट्टान भेदने का दम खम, 

एक बीज में कैसे होता है.. 

कैसे ईश्वर की आभा, 

पत्थर में लायी जाती है.. 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो। 


कैसे सबकुछ खोने वाला

कैसे सबकुछ पाता है.. 

कैसे बिना हाथ के भी 

लक्ष्य को बेधा जाता है.. 

कैसे बिना पैर के कोई

पर्वत रौंदा करता है.. 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो। 


उजड़ी उखड़ी भूमि में कोई

सरसों कैसे बोता है.. 

घास का तिनका घर बनकर

पेड़ों पर कैसे टिकता है.. 

और गुमानी आसमान को

पंछी कैसे छूते हैं.. 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो। 


दुनिया घेरे अंधियारी को

सूरज कैसे पीता है.. 

जो सबसे ही हार गया

वो दुनिया कैसे जीता है.. 

कैसे बांस की लकड़ी कोई

सुर में गाया करती है.. 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो। 


कैसे छिपी सफलता अपनी

कदमों में ले आते हो.. 

कैसे बिन संसाधन के ही

साधक तुम बन जाते हो.. 

कैसे राह असंभव कोई

संभव तुम कर जाते हो। 

सामर्थ्य झोंक दो.. फिर देखो।

-संदीप द्विवेदी

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