देश बसता है दिलों में 

desh basta hai dilon me poem by kavi sandeep dwivedi 

देश बसता है दिलों में 

हर गली और घाटियों में 

मुझमें मेरे साथियों में 

लिखी उसकी पातियों में 

देश बसता है दिलों में 

 

तीखी मीठी बोलियों में 

शहर आती टोलियों में 

मां की अधूरी लोरियों में 

देश बसता है दिलों में। 

 

गूँजते गीतों धुनों में 

नृत्य में और नाटकों में 

प्रकृति के पावन सुरों में

देश बसता है दिलों में 

 

बड़े और छोटे घरों में

खेत खलिहानों वनों में 

पाटों घाटों और पुलों में 

देश बसता है दिलों में 

 

कवियों में और लेखकों में

अफसरों नेताजनों में 

गांव की पंचायतों में 

देश बसता है दिलों में।   

 

चंद्रमा छूते परों में

सरहदों की बाजुओं में

तपी योगी साधुओं में

  देश बसता है दिलों में।। 

          - कवि संदीप द्विवेदी  

 

 

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