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नमस्कार ,
यह साल बीतने को है...गुजर जाने को है ..हाँ ये मुश्किल था हम सबके लिए ..हम सब ही कहीं कहीं न कहीं परेशान ही हुए ..लेकिन इस फेर में हम सबने कई बड़ी बातें सीख ली ..
हम सबने जीना सीख लिया ..
अपने पराये समझ लिए ..
कहना ये है कि हमने रहना सीख लिया...
आज ये ख़याल आया कि इस साल को लिखा कैसे जाय ..हमेशा जानेवाले को अच्छा  कहा जाता है ..इसमें अच्छा क्या था ..और जब ये सोचा तो बहुत कुछ आया ..
कुछ पंक्तियों में आपसे साझा कर रहा हूँ 


यूँ तो खूब रुलाया तुमने
कहाँ नही भटकाया तुमने। 
पर खुश हूँ.. इसी बहाने हमने
हर पल में रहना सीख लिया।। 
तुमसे मिले थपेडों से, 
हमने जीना सीख लिया।।  


साथ मेरे भगवान् भी थे 
पर हम इससे अंजान ही थे
सबके खातिर भिड़ गये स्वयं
जबकि वो इंसान ही थे
झूठी अकड़ भुलाकर हमने
थोड़ा झुकना सीख सीख लिया
साल, तेरे बदले रंगों से
रहना रखना सीख लिया।।। 

मुश्किल अपना उड़ना था, 
तूफानों की सुनना था.. 
पंख बड़े अड़चन में थे, 
सपनों को वापस मुड़ना था.. 
तब जुटकर हिम्मत साधी हमने, 
मिलकर उड़ना सीख लिया.. 
साल, तेरे पंगों से हमने, 
पल पल में रहना सीख लिया। 
तुमसे मिले थपेडों से, 
हमने जीना सीख लिया।। 
                                                                  - संदीप द्विवेदी


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